रोशनी को तरसते तहख़ाने से हो गए हैं..
तूफ़ानों से उजड़े शामियाने से हो गए हैं..
चिलमन भी अब तार-तार होकर रह गई..
आँखों में रखे अश्क़ों को ज़माने से हो गए हैं।
इन रात के अंधेरों से अब लगता नहीं डर..
सूखे दरख्त सा बस देखता हूँ राह-ऐ-सहर..
उम्मीद ओंस की बूँदों से लगा लेता है नादान..
परेशाँ दिल को हर दफ़ा समझाने से हो गए हैं।
वो साथ चलते थे कभी अब नज़रें भी ना मिलती..
वो जान-ऐ-महफ़िल हैं.. और क्या है तेरी हस्ती ?
फ़ना सबको होना है और सब होंगे ही रहबर..
ये कान में कह दो उनके जो सयाने से हो गए हैं।
ना तो आग ही लगी है.. उड़ रहा फिर भी ये धुआँ..
क्या सुलगता है कहीं कुछ.. भला है कोई गुमाँ ?
ना ख़त ही बचे हैं, ना अरमान, ना वादे ही शायर..
ख़त्म सब पिछली सर्दियों में जलाने से हो गए हैं।
You writw pretty well.
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You too are awesome bro… keep it up 🙂
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