श्रिंगार नहीं लिखूँगा..
हाहाकार नहीं लिखूँगा..
निज मरिचिकाओं के लोपन पर
विलाप नहीं लिखूँगा

उपकार नहीं लिखूँगा..
प्रतिकार नहीं लिखूँगा..
रात्रि की लुप्त निद्रा का दिन को
श्राप नहीं लिखूँगा

धिक्कार नहीं लिखूँगा..
पुचकार नहीं लिखूँगा..
मन में जन्मे-मृत हुए अनगिनत
पाप नहीं लिखूँगा

आकार नहीं लिखूँगा..
पारावार नहीं लिखूँगा..
प्रतिक्षण निकट आते विनाश की
चाप नहीं लिखूँगा

सदाचार नहीं लिखूँगा..
अत्याचार नहीं लिखूँगा..
मैं कृष्ण नहीं मैं बुद्ध नहीं, कोई
जाप नहीं लिखूँगा

पर जो सहज लिखा भी तो पढ़ेगा कौन?
मैं लिख सकता अगर तो लिखता मौन।