बात चलते चलते बस ये बात हो गई.. लाश जल के सच की राख हो गई वो सेकते हैं रोटी अफ़वाहों को हवा दे.. नफ़रत को बताते हैं की डर की दवा है पता नहीं मुझे की बात असल क्या है... मैं साथ हूँ उसके, वो मेरी नसल का है वो कह रहे हैं के हमें इंक़लाब लाना है.. इस मुल्क में तबाही का सैलाब लाना है अफ़सोस, मुझे रहना भी है यहाँ.. मातम भी मनाना है.. शक्ल ओढ़े भीड़ की.. फिर घर भी जलाना है।
सच से भागना समस्याओं का निदान नहीं!जूझते रहना ही श्रेष्ठ है।
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Satya Vachan Sir
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