मैं बुझा भी नहीं हूँ जला भी नहीं
संग दो कदम कभी चला भी नही
मुझमें हैं ऐब कई जो सिर्फ़ मेरे हैं
तेरी आदत लगना था बुरा भी नहीं
कोई शोर नहीं है मेरी ख़ामोशी में
तू वो ना सुन जो मैंने कहा भी नहीं
दूरियाँ पहली भी थी दरमियाँ लेकिन
तेरा ना होना कभी यूँ खला भी नहीं
घुटते हुए दम में तेरा नाम ही निकला
पूरा तो नहीं था पर अधूरा भी नहीं
तुझे हारने से ज़्यादा दर्द तब हुआ
तूने जब कहा के मैं लड़ा भी नहीं
खरोंच के देखा, जान बाँकी है क्या?
एक कतरा ना टपका, ज़रा भी नहीं
Bhai bahut achha likhte ho aap! Keep writing!! ✌
LikeLike
Wah sir mst h
LikeLiked by 1 person
Thanks bhai 🙏🏻
LikeLike