मेरी ख़्वाहिशों का अगर आसमाँ होता
क्या मुतमइन होता, या फिर रवाँ होता
तुम चाहे मिलती मुझे जिस भी रहगुज़र
शायद इश्क़ ही होता, और जवाँ होता
वो नज़र ना आते, या दम ही घुट जाता
दिल भी जल जाता तो और धुआँ होता
मेरी महफ़िल में बस मैं हूँ और आईना है
ग़र हाँ में हाँ मिलाता, क्या कारवाँ होता
मुर्दों के शहर में ये है बोलने की क़ीमत
एक कोठरी ही होती, एक पासबाँ होता
बस यही शिकायत रही अपने वजूद से
या दुनिया का ना होता, या बेज़ुबाँ होता
Waah, bahut khoob! 👌👏
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Thanks 🙂
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